Vyomesh Shukla
(for Pranay Krishna)
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A statement about a place means reaching that place. Only they understand the statement of that place whose place it is.
The statement about one’s place reaches one’s place.
At an empty place a man helps sprout a chakbad shrub in a beautiful modern arrangement. Colourful butterflies, as they begin to assemble there, hang and flutter in such a fashion around the man’s head and shoulders as if such an arrangement does not even exist. It cannot be that this is for outside this place and it can be that it is for this place.
Certainly for the butterflies this is what it is.
Local people are of the opinion that the beast that arrives like a beast in tales and stories is, after all, not that beastly. For the people beyond the place, the beast is as dangerous as it has been described.
Within the place, it is a common sight during summer evenings that a hundred snakes come to drink water from an embankment. As the snakes drink water from the place, from outside of the place it seems that a hundred sticks have been stacked closely, side by side. A place is such a place where snakes feel thirsty. Heaven knows what lies outside of the place that there the snake does not feel thirsty anymore and turns into a stick. People outside of the place are continually scared, confusing sticks with snakes.
Outside of the place a man has a few eunuch friends. They do not pester him for money, do not badger him, do not consider him a eunuch and yet they are friends with him. They do not meet always but whenever they do, meetings happen in a friendly manner. Within the place people speak with each other, remember each other when they are unable to meet and are friends with each other.
One cannot meet outside of the place. There are neither friends, nor people, neither existence, nor non-existence.
बहुत सारे संघर्ष स्थानीय रह जाते हैं
( प्रणय कृष्ण के लिए )
जगह का बयान उसी जगह तक पहुँचता है। वहीं रहने वाले समझ पाते हैं बयान उस जगह का जो उनकी अपनी जगह है।
अपनी जगह का बयान अपनी जगह तक पहुँचता है।
एक आदमी सुंदर आधुनिक विन्यास में एक खाली जगह में चकवड़ के पौधे उगा देता है तो रंगबिरंगी तितलियाँ उस जगह आने लगती हैं और उस आदमी को पहचान कर उसके कन्धों और सर पर इस तरह छा जाती हैं जैसे ऐसा हो ही न सकता हो। ऐसा नहीं हो सकता यह जगह के बाहर के लिए है और ऐसा हो सकता है यह जगह के लिए।
तितलियों के लिए तो ऐसा हो ही रहा है।
किस्सों-कहानियों में ख़तरनाक जानवर की तरह आने वाले एक जानवर के बारे में जगह के लोगों की राय है कि वह उतना ख़तरनाक नहीं है जितना बताया जाता है। जबकि जगह के बाहर वह उतना ही ख़तरनाक है जितना बताया जाता है।
जगह के भीतर का यह अतिपरिचित दृश्य है कि गर्मियों की शाम एक बंधी पर सौ साँप पानी पीने आते हैं। जगह में जब साँप पानी पी रहे होते हैं तो जगह के बाहर से देखने पर लगता है कि बंधी से सटाकर सौ डंडे रखे हुए हैं। जगह एक ऐसी जगह है जहाँ साँप को प्यास लगती है। जगह के बाहर न जाने क्या है कि साँप को प्यास नहीं लगती और वह डंडा हो जाता है। जगह के बाहर लोग डंडे जैसी दूसरी-तीसरी चीज़ों को सांप समझ कर डरते रहते हैं।
जगह के बाहर एक आदमी के कई हिजड़े दोस्त हैं। वे उससे पैसा नहीं मांगते, उसे तंग नहीं करते, उसे हिजड़ा भी नहीं मानते, फिर भी उसके दोस्त हैं। वे उससे कभी-कभी मिलते हैं लेकिन जब मिलते हैं दोस्त की तरह। जगह में लोग एक-दूसरे से बात करते हैं, मुलाकात न हो पाने पर एक-दूसरे को याद करते हैं और एक-दूसरे के दोस्त होते हैं। जगह के बाहर मुलाकातें नहीं हो सकतीं। न दोस्त होते हैं, न लोग होते हैं, न होना होता है, न न होना होता है।
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Vyomesh Shukla is a distinct and deep voice from Varanasi. This prose-poem was first published in Sabad (vatsanurag.blogspot.com) in April 2009 and had won the Bharat Bhushan Agarwal Award for that year.